होमोसेक्सुअलिटी कोई बीमारी नहीं ? समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में किया बाहर .

khabaronkasilsila.blogspot.com

समलैंगिकता कोई बीमारी (disorder) नहीं है लेकिन कुछ डॉक्टर इसे मानसिक विकार मानते हैं। यदि कोई पुरुष किसी पुरुष की तरफ आकर्षित है तो उसे गे (gay) और यदि कोई महिला किसी महिला की तरफ आकर्षित है तो उसे लेस्बियन (lesbian) कहा जाता है। संयुक्त रूप से दोनों को समलैंगिक कहा जाता है।
पुरुषों के सेक्स हार्मोन में परिवर्तन के कारण उनमें समलैंगिकता विकसित होने लगती है।
यदि पुरुष अपनी पत्नी द्वारा ठुकरा दियाया जाता है या कोई पुरुष लंबे समय तक अकेला रहता है तो वह समलैंगिक हो सकता है।
बचपन में दोस्तों के साथ की गई गलत हरकतों
के कारण भी कोई व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है।
किसी पुरुष दोस्त के प्रति अधिक लगाव और उसकी चिंता करने के कारण भी एक पुरुष अपने पुरुष मित्र के साथ समलैंगिक संबंध रख सकता है।
जैविक कारणों से भी पुरुष में समलैंगिकता विकसित हो जाती है।
  • महिलाओं के शरीर में मेल हार्मोन (male hormone) का अधिक मात्रा में बनने के कारण कोई महिला समलैंगिक या लेस्बियन हो सकती है।
    सेक्स हार्मोन में परिवर्तन के कारण भी महिला लेस्बियन (lesbian) हो सकती है।
    पीसीओएस नामक बीमारी के कारण भी महिलाओं में समलैंगिकता का भाव पैदा हो जाता है।
    पीरियड बहुत अधिक देर से आना या अनियमित होना, हार्मोन में उतार चढ़ाव (fluctuation), बच्चे को जन्म देने के लिए पर्याप्त हार्मोन का शरीर में न बनना आदि कारण से भी कोई महिला समलैंगिक हो सकती है।
    बचपन से किसी लड़की की परवरिश लड़कों की तरह करने और उन्हें लड़कों के काम करवाने की आदत डलवाने के कारण भी ऐसी लड़कियों में लड़कों के गुण विकसित होने लगते हैं जिसके कारण वह लड़की की तरफ आकर्षित होने लगती है।
    किसी सहेली से अधिक जुड़ा, उसे लेकर जरूरत से ज्यादा चिंतित होना, उसके बिना रह न पाना, और सहेली के साथ की गई गलत हरकतें भी समलैंगिकता का कारण होती हैं।

    किसने दी थी धारा 377 को चुनौती
     नाज फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में यह कहते हुए इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो एडल्‍ट आपसी सहमति से एकांत में सेक्‍सुअल संबंध बनाते है तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए।
  • 2 जुलाई 2009 को नाज फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दो व्‍यस्‍क आपसी सहमति से एकातं में समलैंगिक संबंध बनाते है तो वह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा कोर्ट ने सभी नागरिकों के समानता के अधिकारों की बात की थी।

  • चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया, और समलैंगिगता को अपराध माना

  • सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को होमो सेक्‍सुअल्‍टी के मामले में दिए गए अपने ऐतिहासिक जजमेंट में समलैंगिगता मामले में उम्रकैद की सजा के प्रावधान के कानून को बहाल रखने का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था जिसमें दो बालिगो के आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जबतक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता है
  • धारा 377 की शुरुआत?
  • इस एक्ट की शुरुआत लॉर्ड मेकाले ने 1861 में इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) ड्राफ्ट करते वक्त की. इसी ड्राफ्ट में धारा-377 के तहत समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखा गया. जैसे आपसी सहमति के बावजूद दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच सेक्स, पुरुष या महिला का आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध (unnatural Sex), पुरुष या महिला का जानवरों के साथ सेक्स या फिर किसी भी प्रकार की अप्राकृतिक हरकतों को इस श्रेणी में रखा गया है. इसमें गैर जमानती 10 साल या फिर आजीवन जेल की सजा का प्रावधान है. धारा-377 इस देश में अंग्रेजों ने 1862 में लागू किया था. इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है
  • समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला  2018 सुना दिया है। कोर्ट ने धारा 377 को अवैध माना है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि देश में सबको समानता का अधिकार है। समाज की सोच बदलने की जरूरत है। अपना फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, कोई भी अपने व्यक्तित्व से बच नहीं सकता है। समाज में हर किसी को जीने का अधिकार है और समाज हर किसी के लिए बेहतर है।
  • भारत में दो वयस्कों के बीच होमोसेक्सुअल संबंध बनाना अब अपराध नहीं है.2018 में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली  सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने  दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 से बाहर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत चुनाव को सम्मान देने की बात कही

टिप्पणियाँ