आखिर क्यों 26 जनवरी के दिन ही भारत का संविधान लागू हुआ? जानने के लिए पढ़ें यह आर्टिकल!
पत्रकार डिंपल राणा की कलम से ✒
गणतंत्र दिवस क्यों मनाया जाता है।इस दिन ही हमारे देश को अपना संविधान मिला था। 26 जनवरी 1950 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया था। संविधान लागू होने के बाद हमारा देश भारत एक गणतंत्र देश बन गया। इस के 6 मिनट बाद 10 बजकर 24 मिनट पर राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। इस दिन पहली बार बतौर राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद बग्गी पर बैठकर राष्ट्रपति भवन से निकले थे। संविधान ही है जो भारत के सभी जाति और वर्ग के लोगों को एक दूसरे जोड़े रखता है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में यह तैयार हुआ था। संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी का दिन इसलिए चुना गया, क्योंकि 1930 में इसी दिन कांग्रेस के अधिवेशन में भारत को पूर्ण स्वराज की घोषणा की गई थी। गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर भव्य गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन होता है। राष्ट्रपति तिरंगा झंडा फहराते हैं। राष्ट्रगान और ध्वजारोहण के साथ उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाती है। अशोक चक्र और कीर्ति चक्र जैसे महत्वपूर्ण सम्मान दिए जाते हैं। राजपथ पर निकलने वाली झांकियों में भारत की विविधता में एकता की झलक दिखती है। परेड में भारत की तीनों सेना- नौ सेना, थल सेना और वायु सेना की टुकड़ी शामिल होती हैं और सेना की ताकत दिखती है। ऐसा नहीं है कि 26 जनवरी को राष्ट्रपति द्वारा झंडा फहराने और परेड व झांकियों आदि के समापन के साथ ही यह राष्ट्रीय त्योहार खत्म हो जाता है। 29 जनवरी को ‘बीटिंग रिट्रीट’ सेरेमनी के साथ गणतंत्र दिवस उत्सव का समापन होता है। आजादी मिलने और संविधान लागू होने के इतने बरसों बाद भी आज भारत अपराध, भ्रष्टाचार, हिंसा, नक्सलवाद, आतंकवाद, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा जैसी समस्याओं से लड़ रहा है। हम सभी को एक होकर इन समस्याओं को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। भारत को जब तक इस समस्याओं से बाहर नहीं निकालते तब तक स्वतंत्रता सेनानियों का सपना पूरा नहीं होगा। एक होकर प्रयास करने से श्रेष्ठ और विकसित भारत का निर्माण होगा।
संविधान से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
2 भाषाओं हिंदी और इंग्लिश में संविधान की मूल प्रति प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने लिखी, कॉपी हस्तलिखित और कैलीग्राफ्ड थी
6 महीने की अवधि में लिखे गए संविधान में टाइपिंग या प्रिंट का इस्तेमाल नहीं किया गया
395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियां और 22 भाग थे संविधान लागू होने के समय
284 सदस्य थे इस संविधान को बनाने वाली समिति में, जिन्होंने 24 नवंबर 1949 को संविधान पर दस्तखत किए थे। इसमें से 15 महिला सदस्य थीं
395 अनुच्छेद वाला हमारा पूरा संविधान हाथ से लिखा गया था।
भारतीय संविधान की पांडुलिपि एक हजार से ज्यादा साल तक बचे रहने वाले सूक्ष्मजीवी रोधक चर्मपत्र पर लिखकर तैयार की गई है। पांडुलिपि में 234 पेज हैं जिनका वजन 13 किलो है।
शुरुआती यात्रा
संविधान को अपनाने के तुरंत बाद ही विभिन्न सरकारी नीतियों को असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें चुनौती दी गई थी। रोमेश थापर द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी साप्ताहिक ‘क्रॉस रोड्स' को सरकार की आलोचना करने पर मद्रास में प्रतिबंधित कर दिया गया था। वहीं प्रकाशक बृज भूषण के ऑर्गेनाइजर को मुस्लिम विरोधी भावनाओं के चलते दिल्ली में प्रतिबंधित कर दिया गया था। जब इसे चुनौती दी गई तो उच्चतम न्यायालय ने रोमेश थापर और बृज भूषण के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बरकरार रखा।
एक और समस्या भूमि सुधारों के क्रियान्वयन को लेकर थी। जमींदारी उत्पीड़न को खत्म करने के बाद कुछ राज्यों ने अमीर जमींदारों को कम मुआवजा दिया। इसे कुछ उच्च न्यायालयों द्वारा असंवैधानिक ठहराया गया था। क्योंकि अनुच्छेद 14 के तहत सभी को समान सुरक्षा की गारंटी मिली हुई थी। यह अमीर जमींदारों से भेदभाव की अनुमति नहीं देता था। लेकिन दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह जैसे जमींदारों को पूर्ण मुआवजे का भुगतान करते हुए भूमि सुधार के एजेंडे को लागू किया गया
कानून से जुड़े लोगों ने संविधान को बड़े उत्साह के साथ अपनाया लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सरकार के लिए बड़ी समस्याएं खड़ी कर दी थीं। तत्कालीन संसद ने अदालतों के हस्तक्षेप के बाद मौलिक अधिकारों को सख्ती से लागू करने के लिए संविधान में संशोधन किया। जमींदारी एक बड़ी समस्या थी और यह अनुच्छेद 14 द्वारा गारंटीकृत समान सुरक्षा को कमजोर कर रही थी। इसके चलते भूमि अधिग्रहण से संबंधित अनुच्छेद 31 में अपवादों को जोड़ने के अलावा, तत्कालीन संसद ने अनुच्छेद 31बी के तहत एक नया संवैधानिक प्रावधान बनाया जिसे नौवीं अनुसूची कहा जाता है। नौवीं अनुसूची में शामिल कोई भी कानून न्यायिक समीक्षा से परे है। भले ही यह असंवैधानिक हो और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने दस सूत्री कार्यक्रम के तहत समाजवादी एजेंडे को बड़ी तेजी से आगे बढ़ाया। इसमें राष्ट्रीयकरण, एकाधिकार पर अंकुश लगाना, भूमि सुधार, शहरी क्षेत्र में सीलिंग, ग्रामीण आवास आदि शामिल थे। इनमें से बहुत से समाजवादी एजेंडे संविधान में निर्देशित सिद्धांतों को आगे बढ़ा रहे थे, लेकिन इससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी हो रहा था।
क्या
पूरे देश में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में युवा संविधान की प्रति हाथों में लिए शामिल हो रहे हैं। इस दस्तावेज ने 104 संशोधन देखें हैं और इससे इसका लोकाचार बदल गया है।
कैसे
ये संशोधन आमतौर पर संवैधानिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए लागू नहीं किए गए थे। इसके बजाय वे मौलिक अधिकारों से दूर हो गए और लोकतांत्रिक ढांचे को कुछ हद तक बदल दिया।
लेकिन
तमाम संशोधनों के बावजूद संविधान सात दशकों से हमारा साथ दे रहा है। और लोग जानते हैं कि वे संविधान के शब्दों द्वारा संचालित हो रहे हैं।
भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। इसके ठीक दो महीने बाद यानि 26 1950 को ये देश में लागू भी कर दिया गया। 9 दिसंबर, 1946 को संविधान निर्माण के लिए पहली सभा संसद भवन में हुई थी, जिसमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया था। , डॉ. भीमराव आंबेडकर को इस कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें