हिमानी शिवपुरी फिल्म अभिनेत्री का संघर्ष


Pankajj Kourouv ✒

आम धारणा है कि नाटक करने वालों की ज़िन्दगी भी एक नाटक ही हो जाती है। जैसे कि नाटक न करने वालों की ज़िन्दगी तो मानों ‘एलिस इन वंडरलैंड’ की रोमांचक कहानी ही बनी रहती हो। हिमानी शिवपुरी ने अमेरिका में स्कॉलरशिप के साथ साइंस से पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई का मौका छोड़कर एनएसडी में नाटक और अभिनय में विशेषज्ञता चुनी तो उनके शहर देहरादून में भूचाल ही आ गया। दून स्कूल में हिन्दी के शिक्षक और देहरादून के जाने-माने कवि-साहित्यकार हरिदत्त भट्ट ‘शैलेष’ की होनहार मानी जाने वाली बेटी, अचानक बिगड़ी हुई लड़की कही जाने लगी। हालांकि बाद में एक मौका ऐसा भी आया जब खूब नाम हो जाने पर, देहरादून की जनता ने हिमानी शिवपुरी का एक समारोह में नागरिक अभिनंदन भी किया। एक तरह से कहा जाए तो उन्होंने खुद अपनी किस्मत चुनी। सारा खेल किस्मत का है, यही कहते हैं न लोग? लेकिन किस्मत दरअसल क्या होती है? ‘सपने’ और उन्हें पूरा करने में लगने वाली ‘मेहनत’, इन्हीं दोनों चीज़ों में तालमेल बनने-बिगड़ने को अक्सर लोग ‘किस्मत’ का नाम दे देते हैं। बस सब्र का वह इम्तिहान नहीं देना चाहते जिसका परिणाम किसी भी सच्चाई और लगन से मेहनत करने वाले को सफलता दिला सकता है। हिमानी शिवपुरी ने अपने जीवन में सब्र नाम की वैसी ही एक ऊर्जा को बखूबी साधा। वह इसलिए कि उन्हें सफलता ज़रा देर से मिली, लेकिन जब मिली तो ऐसी मिली कि रंगमंच, टीवी सीरियल, समानांतर सिनेमा से लेकर व्यवसायिक फिल्मों तक हर जगह उनकी उपस्थिति दर्ज हो गई।

24 अक्टूबर, 1960 को जन्मीं हिमानी दून स्कूल के दिनों से ही रंगमंच में सक्रिय हो गईं थीं। हालांकि शुरूआत में नाटक, नृत्य और अभिनय यह सब सिर्फ हॉबी की तरह सिमटकर रहा और वे साइंस में ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी करती गईं। इसी दौरान उन्हें एक थिएटर वर्कशॉप के दौरान एनएसडी जैसे संस्थान के बारे में पता चला जो सिर्फ रंगमंच और अभिनय पर केंद्रित तीन तीन साल की ट्रेनिंग देता है। बस फिर क्या वे अमेरिका में पढ़ाई के लिए वीज़ा एप्लाई करने के साथ ही साथ एनएसडी का इंटरेंस भी दे आयीं। सिलेक्शन हो जाने पर उनके घर में अच्छा ख़ासा हंगामा हुआ। इस हंगामें में पारिवारिक दोस्तों और रिश्तेदारों की गॉसिप ने बड़ी भूमिका निभायी। पर उनके ये अनुभव भी बेकार नहीं गए। संभव है वही अनुभव उन्हें धारावाहिकों में चुगली, कानाफूसी और पारिवारिक पॉलिटिक्स करने वाले किरदार निभाने में सहायक रहे हों।  

खैर वे एनएसडी पहुंच तो गईं और तीन साल के कोर्स के बाद उन्होंने एनएसडी की रेपेटरी के साथ ही काम करते हुए कुछ एक टीवी धारावाहिकों और दो फिल्मों, अब आएगा मज़ा(1984) और In Which Annie Gives It Those Ones(1989) में भी काम किया। फिल्म In Which Annie Gives It Those Ones की ख़ास बात यह भी थी कि इसकी पटकथा अरूंधती रॉय ने लिखी थी और फिल्म में शाहरूख खान ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। हालांकि तब शाहरूख खान कोई बड़े स्टार नहीं थे।

इस दौरान उनके जीवन के 27वें से 32वें साल का कालखंड भी शुरू हो चुका था जिसमें वे रचनात्मक तौर पर बहुत ज़्यादा छटपटाहट महसूस कर रहीं थीं। एनएसडी रेपेटरी से जुड़े रहकर वे कई सालों से दिल्ली में रंगमंच तो कर ही रही थीं साथ ही साथ टीवी और फिल्मों की दुनिया में हाथपैर मारने के बाद एक तरह से हार मानकर उन्होंने रंगमंच को ही अपनी दुनिया बना लिया था।     

तभी उनके जीवन में एक परिवर्तनकारी घटना घटी। जब वे टीवी से तौबा कर चुकी थीं उन्हीं दिनों दूरदर्शन के लिए ‘हमराही’ धारावाहिक लिख रहे मनोहर श्याम जोशी से उनके प्रोड्यूसर ने किसी अच्छी अभिनेत्री का नाम सुझाने के लिए कहा। उन्होंने हिमानी शिवपुरी का नाम सुझा दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वह थोड़ी सरफिरी है शायद मना कर दे। उन दिनों हिमानी वाकई टीवी के काम को धड़ाधड़ मना करती जा रही थीं। लेकिन यह भी कोई संयोग था कि हिमानी शिवपुरी ने धारावाहिक ‘हमराही’ के लिए हां कह दी। उस धारावाहिक में उनका निभाया हुआ ‘देवकी भौजाई’ के किरदार हिमानी शिवपुरी के लिए संजीवनी का काम कर गया। उनके अभिनय की इतनी तारीफ हुई कि फिल्मों के ऑफर्स की लाइन लग गई। इसी के चलते बाद में वे दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हुईं और उनका बॉलीवुड करियर पटरी पर आ गया। हालांकि बॉलीवुड ही नहीं रंगमंच, समानांतर सिनेमा और टीवी की दुनिया में भी उनकी सफलता अब भी बरकरार है। ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ और ‘मम्मों’ से उनकी काबिलियत को समानांतर सिनेमा ने माना और फिर ‘हम आपके हैं कौन’ के साथ ही व्यवसायिक फिल्मों में सफलता का उन्हें ऐसा ट्रैक मिला जिसपर वे अब भी सतत चलती जा रही हैं। रही बात रंगमंच की तो कभी मुंबई के रंगमंच की दुनिया में झांककर देखिएगा। उनके नाटक देखने ऐसी भीड़ उमड़ती रही है कि नाट्यग्रह के बाहर कार-पार्किंग का नज़ारा, ऐसे किसी मैरिज हॉल जैसा हो जाता है, जहां एक साथ चार-चार वीआईपी शादियां हो रहीं हों।


[सैटर्न रिटर्न दरअसल पाश्चात्य ज्योतिष का एक सिद्धांत है। सैटर्न रिटर्न की मान्यता के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 27वें से लेकर 32वें वर्ष के बीच बेहद महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं। जीवन में जटिलता ऐसे घुल जाती है जैसे पानी में नमक और चीनी। एक भयंकर छटपटाहट और बेचैनी पैदा होती है। इस परिस्थिति से पार पाने का एक ही तरीका है, उस X-Factor की खोज जो आपका होना तय करे... जो यह साहस जुटा लेते हैं वे पार लग जाते हैं बाकी एक किस्म के अफसोस की परछायी से जीवनभर बचने की कोशिश करते रहे! 

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