फिल्म एक्टर तब्बू की संघर्ष की कहानी
Pankajj Kourouv ✒
“इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना...”
-मिर्ज़ा ग़ालिब
तबू के ग्लैमर का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा। देवानंद जिसे खोजकर लाए थे, उन तबू पर ग्लैमर की परत हमेशा असजह ही लगती रही। अपने डेब्यू के बाद से वे लगातार डी-ग्लैम होती गईं और फिर वहीं जब वे पक्की गैर-ग्लैमरपरस्त हो गईं, तो उनका वही ग्लैमर इतने जबरदस्त और अनोखे अवतार में उभरा कि कुछ लोगों की नज़र में रेखा भी उनके आगे पानी भरती हैं...
4 नवंबर, 1970 में एक हैदराबादी परिवार में जन्मीं तब्बू एक्ट्रेस फराह की छोटी बहन हैं और वे अपनी उम्र के 15वें साल में ही मुंबई के सैंट ज़ेवियर कॉलेज में पढ़ने आ गईं थी। शायद उसी दौरान देवसाहब की नज़र में आयीं और उन्होंने ‘हम नौजवान’(1985) में उन्हें रोल दिया। हालांकि उससे पहले भी सागर सरहदी निर्देशित, फ़ारूख़ शेख और स्मिता पाटिल स्टारर बाज़ार(1982) में भी वह अपनी झलक दिखा चुकी थीं। उनकी बड़ी बहन फराह की पहचान ग्लैमरस रोल वाली ही रही और तबू भी शुरूआत में उसी दिशा में अपनी पहचान बनाने की कोशिशें करती रहीं। वैंकटेश के साथ तेलगू फिल्म कुली नंबर 1 और संजय कपूर के साथ प्रेम और बोनी कपूर की लंबे अर्से से रूकी फिल्म रूप की रानी चोरों का राजा जैसी फिल्में उनके हिस्से आ चुकी थीं लेकिन उन फिल्मों की रिलीज़ से पहले ही उन्हें अजय देवगन के अपोज़िट विजयपथ(1994) से पहचान मिली। लेकिन अब भी सबसे बड़ा सवाल यही था कि उनकी असली काबिलियत क्या है?
फिर लग गया उनके जीवन का 27वां साल और एक इत्तेफ़ाक तबू के मामले में भी फिर दोहराया गया। तबू के सत्ताइसवें साल ने उन्हें दी गुलज़ार निर्देशित “माचिस”(1996)। यह फिल्म डी-ग्लैम रोल्स की तरफ उनका पहला कदम था। हालांकि वे इस दौरान बॉर्डर(1997), विरासत(1997) और ‘चाची 420’(1998) जैसी फिल्मों में भी सफलता के साथ काम कर रही थीं पर एक सवाल शायद उनके मन भी ज़रूर रहा होगा कि आखिर उन्हें किस तरफ जाना चाहिए? महज ग्लैमरस रोल या अभिनेत्रियों की बंधी बंधायी छवि को बरकरार रखकर काम करना चाहिए या फिर अपनी नयी लकीर खींचने की कोशिश उनके लिए ज़्यादा ठीक होगा?
बहरहाल तबू ने अपने पहले सैटर्न रिटर्न(1997 से 2002) में आखिरकार अपनी अलग लकीर खींचने का फ़ैसला किया और सन् 2000 में रिलीज़ हुई ‘हेरा-फेरी’ और ‘अस्तित्व’ जैसी फिल्मों के बाद एक तरह से खुद को डी-ग्लैम रोल चुनने के लिए तैयार कर लिया।
2001 में ‘चांदनी-बार’, 2003 में विशाल भारद्वाज की ‘मकबूल’, 2006 में मीरा नायर की ‘नेमसेक’ और 2007 में आर. बालकी की ‘चीनी कम’ जैसी फिल्मों से वे ऐसी फिल्मों की तरफ बढ़ गईं जहां से उनकी एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में पहचान बनी। विशाल भारद्वाज की ‘हैदर’, दिवंगत युवा निर्देशक निशिकांत कामत की ‘दृश्यम’(2015) मेघना गुलज़ार की ‘तलवार’(2015) और श्रीराम राघवन की ‘अंधाधुन’(2018) जैसी फिल्मों से तबू डॉर्क रोल्स में भी अपनी चमक किसी सुपरस्टार की तरह बिखेर रही हैं...
आशा है उनकी यह यात्रा यूं ही जारी रहेगी और उम्र और तजुर्बा उनके अभिनय में और भी नए रंग भरता रहेगा। उन्हें जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं।
[सैटर्न रिटर्न दरअसल पाश्चात्य ज्योतिष का एक सिद्धांत है। सैटर्न रिटर्न की मान्यता के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 27वें से लेकर 32वें वर्ष के बीच बेहद महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं। जीवन में जटिलता ऐसे घुल जाती है जैसे पानी में नमक और चीनी। एक भयंकर छटपटाहट और बेचैनी पैदा होती है। इस परिस्थिति से पार पाने का एक ही तरीका है, उस X-Factor की खोज जो आपका होना तय करे... जो यह साहस जुटा लेते हैं वे पार लग जाते हैं बाकी एक किस्म के अफसोस की परछायी से जीवनभर बचने की कोशिश करते रहते हैं...]
HappyBirthdayTabu #Tabu
#SaturnReturn SaturnReturn_27
सैटर्नरिटर्न_27
(तस्वीर इंटरनेट से साभार)
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